राष्ट्रीय एकता एक महत्वपूर्ण विषय है जिसमें हम अपने भारत राष्ट्र की एकता व अखंडता के बारे में चर्चा करेंगे। Rashtriya Ekta Par Nibandh for class 1, 2, 3, 4, 5, 6, 7, 8, 9, 10, 11 and 12th. राष्ट्रीय एकता पर निबंध के माध्यम, इसकी मदत से स्कूली छात्रों को असाइनमेंट करने में सहायता मिलेगी।
राष्ट्रीय एकता पर निबंध Rashtriya Ekta Par Nibandh
प्रस्तावना
विश्व के धरातल पर भारत ने अपनी विशालता और महानता के कारण एक विशिष्ट देश होने का गौरव प्राप्त कर रखा है। कई प्रकार के ऐतिहासिक चरणों में इसका निर्माण हुआ है। यहाँ चन्द्रगुप्त, अशोक, विक्रमादित्य और कई प्रसिद्ध मुगल शासको ने राज किया और अपने शासन काल में सारे देश को एक छत्र राज्य की परिधि में लाने की भरसक कोशिश भी की।
इसके प्राचीन जीवन-पदत्ति और अचार-व्यवहार के अनुसरण से लेकर आधुनिक युग की वर्तमान सभ्यता और संस्कृति हमे इसके एकाकार होने की पराकाष्टा का बोध कराती है। उत्तर का पर्वतीय-भाग हो या दक्षिण का पठार युक्त जनजीवन, गंगा-यमुना जैसी नदियों का उपजाऊ मैदान हो या समुद्र का तटीय जीवन भारत की विभिन्नता में एकता की विशेषता सर्वत्र देखने को मिल ही जएगी।
भारत की महानता को बताते हुए पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे एक संबोधन में केवल राष्ट्र नहीं होकर एक जीता जागता राष्ट्र-पुरुष बताया है। वर्तमान में भी केंद्र और राज्य सरकारे इसकी व्यापकता के आधार पर ही समस्त योजनाओ का निर्माण और कुशल क्रियान्विति की समीक्षा कर रही है।
भोगोलिक विषमता में एकता
जितनी विषमता भारत में है उतनी एशिया महादीप के किसी भी देश में एक ही स्थान पर इस मात्रा में नहीं पाई जाती है इसलिए भारत भोगोलिक विषमता के आधार पर एक देश नहीं समूचा महाद्वीप ही है। इसका उत्तर में स्थित पर्वतीय जीवन और उनकी जीवन शैली दक्षिण के पठार से प्रभावित उष्ण जीवन से बिलकुल भी मेल-मिलाप नहीं खाती है।
इसी प्रकार मध्य में नदियों के मैदानों में लहलहाती फसले पश्चिम के वीरान रेगिस्तान वाले जन जीवन का विपरीत अर्थ बताती है। एक और पर्वतीय क्षेत्रो में तापमान कई दिनों तक माइनस में चला जाता है तो दूसरी और दक्षिण भारत में भीषण गर्मी से पारा 50 तक पहुच जाता है।
इतनी विषमता होने पर भी भारतीय लोगो में अजीब जिजीविषा पाई जाती है और लगभग प्रत्येक राज्य का व्यक्ति अन्य दुसरे राज्य में विपरीत जलवायु होने पर भी रोजगार, आवास आदि की तलाश जारी रखता है। यह देश भिन्नता को पूरी तरह समाप्त करने वाला और असमानता को हर लेने वाला देश है। यहाँ का आम जन-मानस भी सर्व-समन्वय और एकरूपता चाहता है। उसने जियो और जीने दो की भावना को आत्म-सात कर लिया है।
भाषा और साहित्य की एकता
सारे देश की राष्ट्र भाषा एक हिंदी ही रखे जाने के बावजूद भी भारत में असंख्य भाषाए और बोलियों की प्रधानता है। लगभग पन्द्रह मान्यता प्राप्त भाषाए होने के बावजूद इनकी कई उपभाषाए भी पाई जाती है जो मिश्रित रूपों में विद्यमान है। इसके लिए कहा भी गया है –चार कोस पर बदले पानी, आठ कोस पर बानी।
इसी तरह देश के विभिन्न क्षेत्र के लोगो द्वारा लिखा गया साहित्य भी हमे भाई-चारे और सद्भाव की कल्पना करता दिखाई देता है उन सब ग्रंथो और लेखो में विचारो की एकता है और उसमे कही भी क्षेत्रवाद का अनावश्यक राग नहीं पाया जाता है। फारसी लिपि के अलावा भारत की अन्य सब लिपियों की वर्णमाला भी एक ही पाई जाती है।
यहाँ का साहित्य मेल-मिलाप का सन्देश देने वाला और देश-प्रेम बढाने वाला है। तुलसी, सूर, कबीर, मीरा, नानक, रैदास, तुकाराम, विद्यापति, संत तिर्रुवल्लुवर और रविन्द्र नाथ टैगोर आदि की न तो भाषाए एक थी और न ही इनकी रचनाये एक दुसरे से मेल खाती है फिर भी इनकी भावात्मक एकता हमारी संस्कृति और यहाँ के जन की आस्था दिखाती है। विचारो की एकता ही भारतीय लोगो में मानवता को बढ़ाती है।
ऊँचे-ऊँचे पर्वत, बड़ी-बड़ी-नदिया और विशाल क्षेत्रफल होने के बावजूद भारत में कभी क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने वाली या फिर विघटन करने वाली यह क्षेत्रीय विषमता की स्थिती नहीं बन पाई है। रामायण और महाभारत जैसे ग्रन्थ हमारे देश में कई भाषाओ में है या फिर अनुवादित हुए है। इस प्रकार भाषा और साहित्य की द्रष्टि से सारे भारतवर्ष में किसी भी प्रकार का विरोधाभास नहीं है। भारतीय जनता की एकता के आधार इसके शास्त्र और दर्शन ही है।
उपसंहार
आज के वैज्ञानिक युग में दुरी और क्षेत्रफल की समस्या समाप्त हो रही है। पूर्व में देश के एक क्षेत्र के लोगो का सम्बन्ध दुसरे क्षेत्र से नहीं हो पाता था। देश के लगभग सभी भाग एक-दुसरे से जुड़ जाने से हमारी एकता भी समान रूप से बनी हुई है।
देश के दुर्गम क्षेत्रो में भी विकास कार्य लगातार हो रहे है स्थानीय निवासियों में जाग्रति आ रही है। इस प्रकार कहा जा सकता है की भारत की एकता का सबसे बड़ा आधार यहाँ के प्रशासन की एकसूत्रता भी है। यहाँ का संविधान एक है और हम राष्ट्र की राजधानी में बैठे ही देश के हर क्षेत्र में किसी भी योजना का क्रियान्वयन और मूल्यांकन कर पाने में सक्षम है।
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