दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)

आज का टॉपिक है दहेज़ प्रथा पर निबंध (Dowry System Essay in Hindi)। दहेज़ जैसी प्रथा का पूरी तरह से बहिष्कार होने चाहिए। दहेज़ लेना और देना दोनों अपराध है हम सब मिलकर इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ सकते है। Read the entire article on Dowry System Par Nibandh, Paragraph On Dowry System in Hindi, for school students.

Dowry System Essay in Hindi

दहेज़ प्रथा पर निबंध | Dowry System Essay in Hindi

प्रस्तावना (Introduction)

दहेज़ प्रथा को हमारी सभ्यता और सामाजिकता पर कलंक माना गया है । ग्रामीण क्षेत्रो से अधिक शहरी क्षेत्रो में यह समस्या है क्योंकि धनाढ्य वर्ग में इसकी अधिक सक्रियता पाई गयी है। वर्तमान में यह लगभग सर्वसमाजो की एक प्रमुख समस्या बन गयी है । इस बुराई से अब तक देश में न जाने कितनी आत्म-हत्याएं और हत्याए हुई , कितने घर बर्बाद हुए और आज के शिक्षित और सभ्य समाज में भी ये अनवरत रूप से जारी है । आज भी समय-समय पर आग लगाकर, फांसी लगाकर या अन्य तरह से की गयी आत्म हत्या आदि इस कुरीति से सम्बन्धित घटनाये समाचार-पत्रों में देखने और पढने को मिलती है । देश के कई पिछड़े क्षेत्रो में तो यह समस्या विकराल रूप ले चुकी है जहा शिक्षा का अभाव है ।

दहेज़ प्रथा का परिचय:

विवाह के साथ ही विदा के समय अपनी पुत्री को दिए गए सामान को दहेज़ की संज्ञा दी जाती है । इनमे से कुछ तो माँ-बाप अपनी हैसियत के अनुसार प्रसन्नता से देते है किन्तु कुछ दहेज़ के लोभी और स्वार्थी तत्व जो ससुराल पक्ष में महिलाओ का रिश्तों की आड़ में अनुचित रूप से शारीरिक और मानसिक उत्पीडन करते है और बहु को आजीवन पीहर पक्ष से कम दहेज़ देने या फिर और पैसा मंगाने के नाम पर नाजायज परेशान करते है तब यह स्तिथि दहेज़ प्रथा का रूप धारण कर लेती है और समाज में धारणा बन जाती है की शादी में बेटी को यह सब वस्तुये तो देनी ही चाहिए अन्यथा ससुराल पक्ष उसे अनावश्यक रूप से तंग करेगा और उनकी बेटी का वैवाहिक जीवन खुशहाल नहीं बनेगा । दहेज़ की सामाजिक बुराई को घर-परिवार के ही अनपढ़ और निम्न स्तर के विचार रखने वाले कुछ संकीर्ण सोच वाले रूढ़िवादी लोगो से बल मिला है।

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दहेज़ प्रथा के प्रमुख कारण:

अशिक्षा, बेरोजगारी, विलासितापूर्ण जीवनशैली, महंगाई, अनावश्यक खर्चे आदि कई मुख्य और गौण कारण इस सामाजिक बुराई में छुपे हुए है । कई मामलो में शिक्षा के अभाव में अज्ञानतावश यह स्तिथि बनती है तो कई बार आज की विलासिता युक्त जीवनशैली से प्रभावित होकर ऐसी घटनाए घटित होती है क्यूंकि मज़बूर होकर व्यक्ति फैशन के नाम पर तो कई बार शौक पुरे करने के उद्देश्यों से अपने रिश्तेदारों, पड़ोसियों का अनुसरण करने लगता है । कई बार अपने कार्य क्षेत्र की अनिश्चितता या फिर बेरोजगारी की वजह से उसकी आर्थिक स्तिथि खराब होती चली जाती है और निर्भरता के इस स्तर तक आते-आते उसे धन की व्यवस्था का यह तरीका सबसे आसान लगने लगता है । वास्तविक स्तिथि समझ में आने तक सब कुछ उसके हाथ से निकल जाता है और इस स्तिथि से उबरने लिए वह स्वयं तथा अन्य पारिवारिक सदस्यों की सहमति से पत्नी पर पीहर पक्ष की और से कम दिए गए धन का आरोप लगाने लगता है और दबाव बनाने लगता है।

दहेज़ प्रथा के निवारण के उपाय:

दहेज़ जैसी दानवीय प्रथा से निपटने के लिए हमे बचपन से ही हमारे बच्चो में नैतिक शिक्षा जैसे गुणों का महत्व समझाना होगा । स्वयं को भी कई प्रकार से चरित्र में सुधार लाकर कर्मठ और अधिक मेहनती बनना पड़ेगा साथ ही आमदनी के अन्य विकल्प तलाशने होंगे जिससे घर की आरती स्थिती सुधरे और ऐसी अनावश्यक परिस्तिथिया घर में बने ही नहीं, घर-परिवार बर्बाद न हो। साथ ही घर के बुजुर्गो को भी अपनी आदतों में सुधार लाकर धैर्य संयम और सहनशीलता के गुणों का परिचय देना पड़ेगा । देश की सरकार को भी सख्त कानून बनाकर और पिता की संपत्ति में पुत्री को भी पुत्र के समान बराबर दर्जा देना पड़ेगा और दहेज़ के लोभियों को इसकी वास्तविकता समझानी पड़ेगी । लडको को भी स्वयं आगे आकर अपने माता-पिता की ऐसी अनैतिक मांगो का विरोध करना पड़ेगा । मनमानी करने वाले लोगो को दण्ड दिया जाना चाहिए ।

उपसंहार (Conclusion):

वैदिक काल से ही भारतीय सामाजिक व्यवस्था में दहेज़ प्रथा जैसी कुरीति के लिए कोई स्थान नहीं था किन्तु कालचक्र के साथ ही कई व्यक्तिगत और सामाजिक कारण जुड़ते चले जाने से यह समस्या अत्यन्य जवलन्त हो गयी है । इससे हमारी सामाजिकता का हास हो रहा है । रिश्तों में दरारे पड़ रही है जिससे एकल परिवार बढ़ रहे है । दहेज़ से तात्पर्य केवल विवाह के समय ग्रहस्थी के संचालन में आवश्यक वस्तुये दिए जाने से था न की घर की आर्थिक स्थिती नहीं होने पर भी सीमा से परे या ब्याज पर धन की व्यवस्था करके आजीवन कर्ज के बोझ तले दबा जाए । आज इस प्रथा ने जघन्य रूप धारण कर लिया तथा इसका निवारण किया जाना ही दुष्कर हो रहा है । Dowry System दहेज़ प्रथा के कलंक को संयुक्त प्रथा की परंपरा वाले भारतीय समाज के माथे पर से सदा के लिए मिटा दिया जाना चाहिए । तभी हमारी आने वाली पीढ़िया भयमुक्त और भेदभाव रहित वातावरण में जीवन के विभिन्न क्षेत्रो में अपने सोपान पा सकेंगी ।

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